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सगुनिया काकी की खरी-खरी

सगुनिया काकी की खरी-खरी जुलमिया काका आज बहुत खुश हैं। आखिर उनके भगवान के अवतरण का चार साल पूरा हुआ है। झूमते हुए गाना गा रहे हैं, 'मेरे देश की धरती सोना उगले...।' ढिबरिया उनको खुश होते देख हंसते हुए बोला, ' बाबू जी धरती सोना तो उपजा दी लेकिन उस सोने को कोई खरीदेगा नहीं तो सोने का मोल, कंकड़ पत्थर बराबर भी नहीं है।' सगुनिया काकी बोली, ' अब हमरा अनाज सोना नहीं संताप बन गया है, रख सकते नहीं और बेच पाते नहीं। दाम मिलता नहीं। आखिर इन्हें फेंक सकते नहीं।' जुलमिया काका ने कहा, ' सब सोहर गा रहे हैं और तुम हो कि संताप राग अलाप रही हो।' ' आपके भगवान भी नहीं चाहते कि हम यहां खेती करें। नहीं तो कोई कारण नहीं है कि मोजांबिक जैसे देश को सौ प्रतिशत बायबैक की गारंटी के साथ दाल उत्पादन करने में बीज के साथ साथ पूंजी से भी मदद करें और अपने किसानों को अपने हाल पर छोड़ दें।' ढिबरिया बोला, ' देशी अनाज न खाएंगे न खाने देंगे। विदेशी अनाज खाएंगे और खिलाएंगे। अब तो गन्ना किसान भी उसी गन्ने से अपना माथा फोड़ रहा है। पाकिस्तान से दस माथा के बदले, माथा पर पाकिस्तानी च

वैलेंटाइन डे और ढिबरिया

वैलेंटाइन डे और ढिबरिया ढिबरिया भोले बाबा के दर्शन करने मंदिर गया था। लेकिन मंदिर के द्वार के बाहर ही चरणामृत और छिपली में रोली लिए पंडा जी ने उसका रास्ता रोक लिया। उनको देखते ही ढिबरिया का हाथ अनायास अपनी जेब पर चला गया। ढिबरिया ने सोचा, भगवान और भक्त के बीच ये पंडा जी ! कहीं अंगुलीमाल ! पंडा जी बोले, ' अहा जजमान, भगवान का आसीरबाद है... चरणामृत पीओ, सब कष्ट दूर हो जाएगा।' ढिबरिया हंसते हुए बोला, ' सब मेहनत बेकार...जेब ठन ठन गोपाल है।' ' अहा जजमान, सुभ सुभ बोलो...दक्षिणा आज नहीं कल !' ' कल ' ' सालों बाद ऐसा संजोग बना है... बाबा भोले का बियाह और बाबा भेलनटाइन का दिन, एक ही दिन !' ' मने पूरब और पश्चिम, एक साथ। लेकिन समस्या ये है कि अपने भगवान को मानें या उनके ?' ' हम तो कहते हैं, बियाह नहीं तो परेम, कुछ भी कर लो।' ' मने बियाह और परेम, दून्नो दू चीज है ?' ' परेम मक्खन है और बियाह मट्ठा ! मक्खन चाहिए की मट्ठा, सोच लो। लेकिन हम तो कहेंगे परेम ही चुनना। बियाह तो झंझटे-झंझट है।' ' काहे पंडा जी,